कल थी काशी, आज है बनारस

आदिनाथ, आदिश, शिव, हैं इनके नाम, नाम लेने से बन जाते सब काम


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मित्रों, दोस्तों, साथियों हर वर्ग के मनुष्य को सादर नमन. आज की कथा है धरती के आरंभ की. शिव, जी वराह काल में धरती पर आते हैं और कैलाश पर्वत को अपना निवास स्थान चुनते हैं. अभी धरती पर हिमयुग चल रहा होता है. पर अब युग के निर्माण का समय है इसलिए तीनों देव धरती पर आकर अपना अपना निवास स्थान चुनते हैं. ध्यान से सुनियेगा यह कथा. ईश्वर का हर कर्म ज्ञान और परोपकार के लिए होता है. ईश्वर भी तप, साधना, योग, ध्यान से शक्ति को सही दिशा देते हैं. शिव जी कैलाश पर, विष्णु जी समुद्र में और ब्रम्हा जी सरोवर में निवास कर धरा पर सूक्ष्म से विशालकाय जीवन को आरंभ करते हैं. विनाशक देव शिव ही सबसे पहले कैलाश से जीवन को आरंभ करते हैं. धरा पर यक्ष, गण, देव, दानव, ॠषि मुनि, योग, कला, विज्ञान को वेदों में वर्णित कर ज्ञान को पूरी धरती प्रवाहित कर जीवन राग आरंभ करते हैं. इसमें उनको उनके प्रिय मित्रों हरि और ब्रम्ह देव का सहयोग भी मिलता है. तीनों मिलकर एक सुंदर सहज सरल धरा बनाते हैं. जीवन और समय को उत्पन्न करते हैं. शिव जी को इसलिए आदिनाथ कहते हैं. यह आदि का अर्थ आरंभ है. यह शिव सदाशिव का ही रुप हैं. जो शून्य और निर्वात के निर्माता हैं. जो सूक्ष्मतम हैं और अनंत हैं. परमाणु तत्व भी वही हैं और पदार्थ भी वही हैं. वही सदा शिव हैं. जो दिखते नहीं पर हर जगह केवल और केवल वही हैं. कैलाश पर्वत ही धरती का केंद्र है यह पुराण और वेद में लिखा गया है. आज भूवैज्ञानिक इसे प्रमाणित कर चुके हैं. आगे क्या हुआ. जानने के लिए सुनिये सनातन शहर काशी के बनारस बनने की हजार कहानियाँ. बनारसी सिंह आपकी कथा वाचक यानि मैं हूँ. मैं भी शिव अंश हूं. तभी तो प्रभु की सेवा का मौका मिला. फादर्स डे पर शिव जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं. बारंबार धन्यवाद. उनसे अच्छा पिता कोई नहीं. हर हर महादेव. हर जगह अब दिखे तू... तेरे नाम से ही काम है.... बस तेरा ही तेरा नाम है.... बम भोले...
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh