आज कल निंद नहीं आती
तेरे ख्याल मुझे बेचैन कर ते हैं
हिज्र का पैगाम क्या दे दिया इश्क ने
बस तब से हम अब तक तन्हा ही बैठे है
रोते हैं छोटी छोटी बातों पर
और खुद ही को झूठे दिलासे देते फिरते हैं
गिरते थे बार बार चोट खा कर
मगर अब ना मेरे पैर फिसलते हैं
तबीब की दवा बडी काम आई
अब यही दवा मेरे दिल के जख्म भरा करते हैं