Mukesh Kumar Soni

अबला नारी


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सोई है सड़क पर
एक नारी बेहाल।
दे रही छाया उसे है
एक आम की डाल।
इधर-उधर बिखरे हैं उसके
जाने क्यों सारे बाल?
खुदरी है कहीं कहीं
उसकी श्यामल छाल।
पांव में दिखता है पायल
पर कहां है उसमें ताल?
थोड़ा पास ही पड़ा है
उसका छोटा टूटा थाल।
पास ही उसके बिलख रहा है
उसका प्यारा लाल।
स्तन से सटी है
जिसकी कोमल गाल।
क्या दशा है नारी की
हाय कैसा है काल।
कौन है दोषी इसका
किसकी है यह चाल?
देखो-देखो यही तो है
अबला नारी की  हाल। 
MUKESH KUMAR SONI
NET Qualified in Yoga
M.A. in Yoga,M.A. in Hindi,
Post Graduate in Yoga and Naturopathy
M-9836783469,9088102430
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