आज की कहानी बड़ी सरल और सहज है. आज बात ही बाबा भोले को भक्ति के कौन से रुप से प्रसन्नता मिलती है. भक्त का भाव कितना महत्वपूर्ण होता है. एक समय कि बात है शिव और पार्वती आकाश मार्ग से सृष्टि के एक ओर से दुसरे छोर पर जा रहे थे और भक्त और भक्ति पर बात हो रही थी. विधि और नियम धर्म महत्वपूर्ण है या भक्त की सरलता. मुद्दा थोड़ा गरम हो गया. तब महादेव ने कहा कि चलिए आपको उदाहरण से समझाते हैं. देखिए मेरे यह दो भक्त है. आप बताये इनके व्यवहार देख कर कौन सच्चा भक्त है. देवी ने दोनों भक्तों को देखा और कहा क्या प्रभु जो स्नान और विधि पूर्वक पूजा करते हैं पंडित जी वही हैं सच्चे भक्त. यह साधारण मनुष्य तो बहुत ही विचीत्र है. जिस लोटे से नित्य कर्म में पानी प्रयोग करता है उसी लोटे से आप को जल भी अर्पित करता है. यह तो बिलकुल भी आपका भक्त नहीं. प्रभु ने कहा ठीक है क्यों न दोनों की परीक्षा ली जाये. अब दुसरे दिन जब पंडित जी मंदिर में पहुंचे और किसान भाई नित्य कर्म से लोट मंदिर पहुंचे तो मंदिर हिलने लगा भूकंप आ गया. दिन में ही रात हो गया. पंडित जी पूजा पाठ छोड़ कर भाग गये. पर किसान मंदिर में गया भोले नाथ के शिव लिंग को पकड़ कर बैठ गया. प्रभु घबराना मत मैं हूँ आपके साथ. सब ठीक होगा. अब माता पार्वती को पता चल गया था कि भक्ति का आडम्बर और असल भक्त कौन है. अब आप भी समझ गये होंगे कि भोले भंडारी को प्रेम भाव ही प्रिय है. जो विनाश के देव हैं जो संतुलन के कारक हैं. उन शिव शम्भू को प्रेम ही प्रभावित करता है. दिखावा नहीं. हर हर महादेव.