बातों बातों में (Baton Baton Mein)

अगर चलना ही ज़िंदगी है, फिर हम बार बार क्यों रुक जाते हैं?


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कई बार हमारी ज़िंदगी में ऐसे कई पल आते हैं जब हमें लगता है कि कुछ हो नहीं रहा. ज़िंदगी जैसे थम-सी गई है। या ये कहें की ज़िंदगी उस मिट्टी में फ़सें गाड़ी कि पहिए जैसी हो गई है जो सिर्फ़ घूम रहा है मगर गाड़ी आगे नहीं बढ़ रही है। आपके साथ ऐसा कभी हुआ है?तो चलिए, आज अपनी गाड़ी को आगे धकेलते----- ना ना ना, आगे बढ़ाते है और ये भी समझने की कोशिश करते हैं की को कौनसी बातें है या आदतें हैं जिनके कारण हमारी गाड़ी आख़िर बार बार फँस जाती है। और अगर फिर से ऐसा हुआ तो हम क्या कर सकते है।
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बातों बातों में (Baton Baton Mein)By Alpana Deo

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