पत्रकारिता का वो चेहरा जो तमाम चेहरों पे चढ़े नकाब हटाने का माद्दा रखता है वो भी सुबूतों के साथ। आजकल शिक्षा जगत के बादशाह जगदीश गांधी जी की नींव में दबे संवेदनशील सुबूतों के साथ बादशाहत की काली करतूतों की परत उधेड़ने में जुटा है और पहले भी तमाम परत इस क़दर उधेड़ी हैं मानो चमड़ी उधेड़ी जाए।
सच की क़लम और उसकी ताक़त को महसूस करने का दिल करे तो देश के तमाम जाबांज और बेबाक ,कभी न बिकने वाले पत्रकारों में इन्हें गिना जाता है।