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भक्त का अर्थ है कि वह भगवान् को भोग अर्पण तो अवश्य करेगा।
किन्तु Iskcon में बताया जाता है कि हम भगवान् को सीधे भोग नहीं अर्पण कर सकते क्योंकि हम योग्य नहीं हैं ।
अतः श्रीप्रभुपाद को निवेदन करते हैं कि वे भोग अर्पण करें ।
क्या यही सही विधि है ?
क्या हम भगवान् को भोग अर्पण करने के योग्य नहीं है ?
By SRI SRI 108 SHACHINANDAN JI MAHARAJभक्त का अर्थ है कि वह भगवान् को भोग अर्पण तो अवश्य करेगा।
किन्तु Iskcon में बताया जाता है कि हम भगवान् को सीधे भोग नहीं अर्पण कर सकते क्योंकि हम योग्य नहीं हैं ।
अतः श्रीप्रभुपाद को निवेदन करते हैं कि वे भोग अर्पण करें ।
क्या यही सही विधि है ?
क्या हम भगवान् को भोग अर्पण करने के योग्य नहीं है ?