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भागवत धर्म का अर्थ है अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना, मानना और दर्शन करना। अर्थात अपने आप के बारे में जानना या आत्मप्रज्ञ होना। गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरूप अर्थात जीवात्मा को अध्यात्म कहा गया है। आत्मा परमात्मा का अंश है, यह तो सर्वविदित है। जब इस संबंध में शंका या संशय, अविश्वास की स्थिति अधिक क्रियामान होती है तभी हमारी दूरी बढ़ती जाती है और हम विभिन्न रूपों से अपने को सफल बनाने का निरर्थक प्रयास करते रहते हैं इसका परिणाम नकारात्मक ही होता है।
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भागवत धर्म का अर्थ है अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना, मानना और दर्शन करना। अर्थात अपने आप के बारे में जानना या आत्मप्रज्ञ होना। गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरूप अर्थात जीवात्मा को अध्यात्म कहा गया है। आत्मा परमात्मा का अंश है, यह तो सर्वविदित है। जब इस संबंध में शंका या संशय, अविश्वास की स्थिति अधिक क्रियामान होती है तभी हमारी दूरी बढ़ती जाती है और हम विभिन्न रूपों से अपने को सफल बनाने का निरर्थक प्रयास करते रहते हैं इसका परिणाम नकारात्मक ही होता है।
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