Katha Sangam

Bhatakti Raakha (भटकती राख़)


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आदमी जब सुख की ख्वाहिश के पीछे पागल होकर  जिंदगी में,  खासकर दुनियावी चीजों और जिस्म की जरूरतों के लिए,  एक ऐसे रास्ते पर चल पड़े जो ना -मुनासिब हो तब इस जिस्म के मरने के बाद भी उसकी खाक भटकती रहती है। छीना -झपटी से हासिल की गई हर चीज एक दिन जरूर सवाल पूछती है। सुपुर्दे-खाक होने के बाद जिस्म तो बचा नहीं जबाव देने के लिए। ऐसी ही एक कहानी भटकती -राख है; मरनेवाले का अपने गुनाहों का एकरार  और पछतावा, और साथ में उसकी कैफियत भी। कहानी उस सच को उजागर करती है जिसपर आम तौर पर लोग बात करने से भी कतरातें हैं। कहानीकार दामोदर खड़से ने  गजब का ताना -बाना  बुना  है। कहानी सुनने के बाद आप खुद तय  करें की गुनहगार कौन है; परिस्थितियाँ या किरदार। 

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Katha SangamBy Rekha Damle