कल थी काशी, आज है बनारस

भगवान शिव को प्रिय है, बेल पत्र और एक लोटा जल, dhatura जाने इनका वैज्ञानिक प्रयोजन...


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आज की कड़ी में घटना और जानकारी है मित्रों. यह केवल आरंभ है जानकारी और घटना का. मैं केवल माध्यम हूँ यह जानकारी और बातें आपतक पहुचाने की. प्रयास और प्रेरणा सब ईश्वर ने दी है. इसमें बहुत से लोगों का प्रयास और समय लगा है सभी को मैं आभार व्यक्त करती हूँ. आगे उनके नाम भी जरुर बताउंगी. खैर आज शिव नाम का अर्थ आप को बता रही. शिव पूजन में उपयोग होने वाली हर वस्तु की प्रकृति शीतल है. इसलिए यह शिव पूजन में उपयोग होती है. श्रावण माह में धरती की सुरक्षा और संचालन को तत्पर महादेव जो ब्रम्हांड की समस्त उर्जा का केंद्र हैं. उनकी विनाशक उर्जा से उपासक भस्म ना हो इसलिए उनके विग्रह को ज्योतिर्लिंगों में चार बार अलग अलग पदार्थ से पूजन होता है. जलाभिषेक, दुध, दही, शहद, घी और फूल, फल, बेल पत्र, धतूरा, भांग, सभी औषधि गुण वाली वस्तु चढायी जाती है. जिससे शांति और शीतलता का प्रवाह होता है ईश्वर की और. वही जो आप प्रेम भाव से समर्पित करते हो वो वापस कल्याण कारी उर्जा में आपको मिलता है. मेरे प्रबोधन काल में मैंने पढ़ा कि धर्म एक वो है जिसकी रक्षा के लिए श्री हरि विष्णु ने दस अवतार लिए. धर्म वो जो गीता में वर्णित है. धर्म वो जो एक जीवन जीने की प्रक्रिया है. वही धारण करने योग्य है. मैं धर्म पालन में विश्वास रखती हूँ. धार्मिक हूँ. पर मैं हिसंक नहीं हूँ. मै कट्टर नहीं हूँ. मैं संरक्षक हूँ. मै सनातनी हूँ. मैं मानव हूँ. यही मेरा धर्म है. मेरे भगवान और उनका आदेश और वेद मेरे लिए जीवन ज्ञान और मार्ग हैं. हम काशी वाशी हूँ. हमारा ईश्वर आदिवासी हूँ. आदिवासी मतलब जो आदि काल से है. जो आरंभ है. काशी में शिव शंकर है. जो हर किसी की शंका को, भय को, संशय को, अज्ञान को हर लेते हैं. सहनशीलता, धैर्य और विवेक ही हमारा धर्म है. यह हमारे ईश्वर का गुण है. तो पूरे विश्वास और प्रेम से बोलते रहीए हर हर महादेव....
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh