मानव का धर्म होता है मानवता । मानवता की रक्षा करना धर्म की ही रक्षा करना होता है; लेकिन धर्म की रक्षा के पहले धर्म-अधर्म का अंतर जानना आवश्यक होता है, जिसका ज्ञान मिलता है, परमात्मा के अंश आत्मा से; जो सब ही प्राणियों की जीवनी शक्ति है। अपनी आत्मा द्वारा मिल रहे इस ज्ञान की रक्षा करो, जिसको तुमने अपने स्वार्थों की अनेक पर्तों के नीचे दबा रक्खा है, तब ही तुम्हें जीवन की दिशा और उस दिशा पर चल कर सफलता प्राप्त होगी।