कल थी काशी, आज है बनारस

भक्तों की भक्ति का नशा है शिव को, एक पल की पुकार पर रक्षक बन जाते हैं भोले भंडारी...


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सबसे पहले मुझे क्षमा दान दिजिए सभी श्रोता गण. इस बार विलंब अधिक हुआ पर वजह भी थी. सभी जानते हैं कोरोना और लाॉकडाउन पूरे भारत में अपने पैर पसार चुका था. मेरे परिवार में भी कुछ लोग ग्रस्त हुए. मैं भी इस अदृश्य विषाणु के प्रभाव में रही. महादेव की भक्ति और दवा और परिवार के स्नेह से सब कुछ उत्तम है. अब आपकी कहानी. किरातों के नगर में रहने वाला निर्धन ब्राहमण देवराज. जिसमें लालच है और लोगों को छलने में उसे आनंद आता है. वह असत्य के मार्ग पर चल कर अति शीघ्र धनी हो जाता है. अपने नगर के किसी भी व्यक्ति को नहीं छोड़ता. नगर में आने वालो को भी छल लेता. इतना धनी होने पर भी उसकी धन लोलुपता नहीं छुटी. अब उसने अन्य नगर को अपनी ठगी की कला से जीतने का मन बना या वो अपने नगर से निकल कर प्रतिष्ठान पुर पहुचा. वहा एक शिवालय में विश्राम के लिए रुका. जो संतों और ब्राह्मण लोगों से भरा था वहा रोज शिव पुराण का पाठ होता. देवराज यहाँ आते ही ज्वर का शिकार हो गया. इसी शिवालय में उसका एक माह उपरांत अंत हो गया. मृत्यु उपरांत जब यमलोक गया तो वहाँ शिव गण आये और उसे शिव के धाम ले गये. आगे क्या हुआ उसके लिए एंकर डाउनलोड कर बनारसी सिंह के पॉडकास्ट को सर्च कर 'काशी के बनारस बनने की हजार कहानी ' खोजें और सभी कहानी सुने और मित्रों को भी शेयर करें. कहानी का आनंद तो सबको मिलना चाहिए. हर हर महादेव बोलते रहिये.
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh