कल थी काशी, आज है बनारस

बिस्मिल्लाह खान को काशी ke पंचगंगा घाट पर मिला वो संत जिसने कहीं उनके भविष्य की कहानी


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पंचगंगा घाट है एक जो स्थित है गंगा किनारे. कांची पुरम है यह काशी का. शिव के आराध्य हरि का धाम. पूर्वजों को दिखाता है यह रोशनी का मार्ग. कबीर, तुलसी, रामानंद और तैलंग स्वामी के जीवन चिंह लिए बैठा है यह. राम भक्ति की निर्मल धारा का प्रतीक है यह. बालाजी और राम का स्थान है. हिंदू मुस्लिम परंपरा का जीवंत प्रमाण है. पंचनद तीर्थ है एक और हिंदू के लिए तो दूसरी ओर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की इबादत और कला के अभ्यास का स्थान है. हरि के द्वार पर श्रद्धा सुमन और समर्पण ही पूजा और इबादत है इसका प्रमाण है यह घाट. यह बनारस नाम सा रस से भरा और अद्भुत रुमानियत वाला स्थान है. बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का काशी के द्वार पर. आइए और काशी के ठाठ का मज़ा लिजीए इसके मनोरम घाटों पर. जाने अंजाने आपके तार जुड़ जाने हैं. यह आध्यात्म और ज्ञान की नगरी काशी है. यह संगीत और बनारसी घराने की नगरी काशी है. यह यह कचोड़ी, जलेबी और आम की नगरी काशी है. यह हिंदू और मुस्लिम सोहार्द की नगरी काशी है. कहते हम खुद को बनारसी हैं पर मन में बहती काशी है. यह चिंता से मुक्त करने वाली काशी है. यह मोक्षयिस्यामि देव नगरी काशी है. इहाँ हर के हुं गुरु हव. काहे कि गुरु शिष्य परंपरा के उदगम स्थान काशी हव. ज्ञान, विज्ञान, तंत्र-मंत्र, कर्मकांड, अध्यात्म, वैराग्य, जीवन- मृत्यु का संगम काशी है. पर हम सब बनारसी हैं. काहे कि बनारसी होवे में भौकाल हव. बनारसी पन इहाँ एटीट्यूड हव. काशी चरित्र ह. सब कुछ बड़ा विचित्र हव. पर इहे काशी क चरित्र है. कुछ समझे नहीं... हम दिल में आते हैं समझ में नहीं... समझो नहीं बस स्वीकार करो... समझने के लिए काशी आना पड़ेगा यहाँ आकर गंगा नहाना पडेगा, सुबह कचोड़ी जलेबी और संझा को समोसा और लवंगलता खाना पडेगा, तब जाकर समझोगे क्या है बनारस उर्फ काशी... सबकी आती नहीं हमारी जाती नहीं... अकड़... हर हर महादेव... सुनीए और सुनाईए जिंदगी बनायीए कभी दिल करे तो काशी हो आईए... जिंदा है यह शहर दिल से... जय हो...
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh