रुद्रहीनं विष्णुहीनं न वदन्ति जनाः किल। शक्तिहीनं यथा सर्वे प्रवदन्ति नराधमम्।। पतितः स्खलितो भीतः शान्तः शत्रुवशं गतः। अशक्तः प्रोच्यते लोके नारुद्रः कोऽपि कथ्यते।। ..........ब्रह्मा विष्णु महेश मणिद्वीप में जातेही देवीके प्रभावसे स्त्री हो गये। वे पुनः पुरुष नहीं बनना चाह रहे थे। उन्होने देवीके चरणनखमें समूचे ब्रह्माण्ड और अपने ही सदृश ब्रह्मा विष्णु महेश को देखा। ब्रह्माके कालमानसे सौ वर्ष तक स्त्रीरूप में देवीलोक में रहकर देवीकी भक्ति किये। ....देवीने तीनों को नवार्णमंत्र दिया और अपनी शक्ति के रूपमें क्रमशः महासरस्वती , महालक्ष्मी और महाकाली को दिया। ब्रह्मा एवं शंकरको आदेश दिया कि विष्णुको आप लोग अपनेसे श्रेष्ठ मानियेगा। यह भी कहा कि विष्णु शंकर और ब्रह्मा में भेद देखने वाला नरकगामी होता है। वेदान्त का उपदेश देते हुए देवीने कहा कि "मैं न स्त्री हूं न पुरुष न नपुंसक, मैं ही निर्गुण ब्रह्म हूं। ब्रह्म अद्वितीय एक नित्य और सनातन है। सृष्टि रचनाके समय वह द्वैतभाव धारण कर लेता है क्योंकि विना दोके सृष्टि होना असम्भव है।"