तीनों गुणों का सम्बन्ध विचित्र है। तीनों हैं तो परस्पर विरोधी किन्तु एक दूसरे के विना नहीं रह सकते। कोईभी अकेला कभी नहीं रह सकता। केवल एकके साथ भी नहीं रह सकता। तीनों साथ ही रहते हैं। विचित्रता यह है कि यह एक दूसरे के विना रह भी नहीं सकते और एक दूसरेकी उन्नति भी नहीं देख सकते। यह तीनों एक दूसरेके उत्पादक भी हैं। आत्मसाक्षात्कार गुणातीत होने पर होता है।साधक को चाहिये कि अपनेमें निरन्तर सत्वगुणका विकास करे, रजोगुण को नियंत्रित करे और तमोगुण का संहार करे। अन्योन्याभिभवाच्चैते विरुध्यन्ति परस्परम्। तथान्योन्याश्रयाः सर्वे न तिष्ठन्ति निराश्रयाः।।13।।अन्योन्याश्रिताः सर्वे तिष्ठन्ति न वियोजिताः। अन्योन्य जनकाश्चैव यतः प्रसवधर्मिणः।।45।। सत्वं कदाचिच्च रजस्तमसी जनयत्युत। कदाचित्तु रजः सत्वतमसी जनयत्यपि।।46।।सत्वं प्रकाशयितव्यं नियन्तव्यं रजः सदा। संहर्तव्यं तमः कामं जनेन शुभमिच्छता।।12।।