MicInkMusafir (Amitbhanu): Voices, Verses, & Voyages

धरा, धर्म और धरती: शास्त्रार्थ में पर्यावरण चेतना(Ep.4) Podcast: Shastrarth(S1)


Listen Later

धरा, धर्म और धरती: शास्त्रार्थ में पर्यावरण चेतना‘ॐ द्यौ: शान्ति: अन्तरिक्षं शान्ति: पृथिवी शान्ति: आप: शान्ति: औषधय: शान्ति:’ –यजुर्वेद का यह शांति मंत्र केवल शब्द नहीं है, बल्कि यह उस वैदिक चेतना का उद्घोष है जिसमें मानव और प्रकृति के बीच कोई दूरी नहीं थी। आज जब पृथ्वी कराह रही है – जंगल कट रहे हैं, नदियाँ सूख रही हैं और हवा सांस लेने लायक नहीं बची – तब बार-बार मन पूछता है: क्या धर्म कोई राह दिखा सकता है?इसी सवाल का उत्तर खोजने के लिए आज हम एक शास्त्रार्थ कर रहे हैं – धर्म के शास्त्रों से, परंपराओं से और अपने अंदर की चेतना से।वेदों में प्रकृति – पंच महाभूत की पूजावेदों में प्रकृति कोई अलग सत्ता नहीं थी – वह स्वयं ईश्वर का विस्तार थी। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – पंच महाभूत ही तो जीवन के आधार हैं। ऋग्वेद में धरती को माता कहा गया – ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:’ – ‘‘पृथ्वी मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ।’’ऋषियों के आश्रम जंगलों में ही क्यों बसते थे? क्योंकि उन्हें पता था कि ज्ञान का स्रोत किताबों में नहीं, प्रकृति में है – नदी की धारा, पत्तों की सरसराहट, अग्नि की ताप – यही साक्षात शिक्षक थे।अथर्ववेद में पृथ्वी सूक्त है – जिसमें धरती को हजारों नामों से पुकारा गया है – उपजाऊ भूमि, औषधियों का घर, जल स्रोतों का स्त्रोत। नदियों की स्तुति भी अद्भुत है – सरस्वती, गंगा, यमुना, सिन्धु – हर नदी को देवी माना गया।आज के वैज्ञानिक मानते हैं कि नदियों का पुनर्जीवन केवल इंजीनियरिंग से नहीं होगा – समाज को फिर से उनसे रिश्ते बनाने होंगे। हमारे पूर्वजों ने यह काम हजारों साल पहले कर दिखाया था।हमारे देवी-देवता किसी मंदिर में बंद नहीं थे – वे जंगलों, नदियों और पहाड़ों में निवास करते थे। • शिव – कैलाशवासी। पशुपति – पशुओं के रक्षक। • विष्णु – क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन। • सरस्वती – बहती नदी और ज्ञान की देवी। • गंगा – हिमालय से निकलकर सागर तक जीवन देती।आज गंगा मैली क्यों है? क्योंकि हमने नदी को सिर्फ पूजा की वस्तु बना दिया, संबंध खो दिया। शास्त्रों में नदी पूजा के साथ-साथ नदी संरक्षण भी था।वृक्ष पूजा – प्रतीक नहीं, जीवन का आधारपीपल, वटवृक्ष, नीम, तुलसी – हमारे यहाँ कोई पौधा यूं ही पवित्र नहीं था।पीपल – दिन-रात ऑक्सीजन देने वाला पेड़।तुलसी – औषधीय गुणों से भरपूर। वटवृक्ष – दीर्घायु और छाया दाता। बौद्ध और जैन दृष्टि – लघु उपभोग और अहिंसाबुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया – आज बौद्ध विहारों में वृक्ष और बाग-बगीचे अनिवार्य हैं।जैन मुनियों का जीवन – अहिंसा का चरम। न केवल जीवों की हत्या से बचना, बल्कि पेड़-पौधों को भी यथासंभव नुकसान न पहुँचाना।आज के दौर में ‘लिमिटेड कंजम्प्शन’ की जो बातें हम यूरोप से सीखने निकले हैं, वो हमारे जैन दर्शन में पहले से है – ‘अपरिग्रह’ यानी अनावश्यक संग्रह न करना।लोक परंपराएँ – प्रकृति के लोक गीतमहात्मा गांधी से चिपको आंदोलन तकगांधीजी का ‘सादा जीवन उच्च विचार’ केवल गरीबी का महिमामंडन नहीं था – यह प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्व की चेतावनी थी। ‘Earth provides enough to satisfy every man’s need but not every man’s greed.’ – ये उनका प्रसिद्ध कथन था।इसी सोच से निकला चिपको आंदोलन – गौरा देवी और गांव की महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर जंगलों को बचाया। आज भी उत्तराखंड के गाँवों में महिलाएँ जंगल की असली संरक्षक हैं।कहां गड़बड़ हो गई?जब धर्म कर्मकांड बन गया और आचरण छूट गया, तब संकट शुरू हुआ। अब नदी पूजा बची – नदी सफाई नहीं। गंगा में पूजा सामग्री, मूर्तियाँ और कचरा बहाना पुण्य मान लिया गया।क्या शास्त्रों में ऐसा कहीं लिखा है? बिल्कुल नहीं! शास्त्र तो कहते हैं – ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ – यानी हर जीव सुखी रहे। नदी, जंगल, पशु – सब जीव ही तो हैं।आज के लिए समाधानअगर हम सच में धर्म से पर्यावरण बचाना चाहते हैं तो:हर मंदिर, मठ, गुरुद्वारा – वृक्षारोपण केंद्र बनें।हर पूजा – एक पौधा अनिवार्य।नदी उत्सव – नदी सफाई के साथ।गाँव-कस्बों में फिर से ‘ग्राम देवता’ और ‘ग्राम वन’ परंपरा जिंदा हो।शास्त्रार्थ का निष्कर्षआज का धर्म पंडालों में बंद है। उसे जंगलों में, नदियों में और खेतों में लौटना होगा। तभी ‘धरा, धर्म और धरती’ का यह पवित्र त्रिकोण फिर से संतुलित होगा।यजुर्वेद के शांति मंत्र से बड़ा कोई समाधान नहीं –‘ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:’पहली शांति – भीतर के मन की।दूसरी शांति – समाज की।तीसरी शांति – धरती की।जब तीनों शांति मिल जाएँ, तभी असली धर्म जागेगा।पौधा लगाएँ, नदी बचाएँ – यही धर्म है।लेख – शास्त्रार्थ पॉडकास्ट के लिए विशेष | लेखक: अमितभानुA Podcast by Amitbhanu | MicInkMusafir

...more
View all episodesView all episodes
Download on the App Store

MicInkMusafir (Amitbhanu): Voices, Verses, & VoyagesBy MicInkMusafir (Amitbhanu)