कल थी काशी, आज है बनारस

दक्षिण वासी सरस्वती कैसे बने तेलंग स्वामी, जिनसे मिल रामकृष्ण परमहंस बोल गए ये बात..


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जिसके जन्म से चमत्कार जुड़े हों. जो स्वयं चमत्कार करते थे. जो वैरागी और साधक थे. जिन्हें योगी शिव का अवतार कहा गया. जो शिव का अंश थे. जिसने साधना को जीवन बना लिया. जिसने मौन भाव से काशी को पावन किया. जिससे मिला रामकृष्ण परमहंस भावुक हो गये. आये थे शिव दर्शन को मिलकर एक वैरागी से तृप्त हो गये. बोले यह ही काशी के विश्वेशवर महादेव हैं. जिसे काशी के लोग चलते फिरते काशी विश्वनाथ कहते थे. जी हाँ तैलंग स्वामी नाम था उनका. जिनका मठ पंचगंगा घाट पर आज भी है. जिसने नर्मदा में दुध की नदी बहा दी. जिसने काशी नरेश को ज्ञान दिया. जिसने कोढ़ी को काया दिया और मृत को जीवन. जिसने विषपान किया और फिर भी 280 की आयु में जल समाधि ली. ऐसे तैलंग स्वामी जो योग और आध्यात्म के चरम पर थे. जो लाहिड़ी जी जैसे विद्वान के मित्र और प्रसंशक थे. जिनको छुने मात्र से किसी का जीर्ण रोग दुर हुआ. जिसमें शिव ने ज्वाला रुप में प्रवेश किया वह है तैलंग स्वामी. जिसने 78 की उम्र में दिक्षा लिया. जो एकांत में ही प्रसन्न रहते. भोजन नहीं करते तब भी विशालकाय काया वाले स्वामी गणपति सरस्वती कहें या तैलंग स्वामी. और बहुत कुछ है जानने को तो सुनिए सनातन शहर काशी के बनारस बनने की यात्रा की 1000 कहानियाँ. बनारसी सिंह के पॉडकास्ट पर. एंकर और गूगल आदि पर पढ़ा और सुना जा सकता हैं मुझे. एक नई परंपरा बना रही मैं अपनी जड़ो की तलाश में हूँ. हम में से हर कोई जब भी कहीं कभी एकांत में होता है तो मन से एक प्रश्न उठता है जहन में कौन हूँ मैं क्यों हूँ मैं क्या हूँ मैं. यहीं से एक यात्रा आरंभ होती है नयी नहीं पुरानी पहचान की. बस हमें याद नहीं होता. माया के परे एक जहाँ और भी है जहाँ केवल आप है मैं हूँ. हम है. वही हमारा घर है यह तो सराय है कुछ समय ठीकना है फिर वापस वही जाना है. हम एड देखते हैं और बिना सोचे कोई भी वस्तु चाहे उपयोगी हो या नहीं बस खरीद लाते हैं. क्योंकि हमें प्रभावित किया जाता है धीरे धीरे आवाज और चित्रों द्वारा. ठीक वैसे ही हमारी सोच और आत्मा को दो सौ साल की गुलामी ने मार दिया है. हमें लगता है बड़े हो जाओ, अच्छे नंबर पाओ, नौकरी करो, शादी करो, बच्चे करो, फिर पालो और मर जाओ. अगर परिवर्तन ही जीवन है तो मृत्यु से भयभीत क्यों होते हैं हम. इतना डरा रखा है भगवान के नाम पर धर्म ने, संस्कार के नाम पर समाज ने, असफलता को जीवन का अंत और सफलता को जीवन का लक्ष्य किसने बनाया. समाज ने. समाज कौन वो चार लोग जो कभी खुश नहीं रहे, जिसने जीवन जीया नहीं, जो सफलता से बहुत दूर हैं. ऐसे चार लोगो को फालो मत करो. जो करना है करो. बस एक बार यह सोच लेना इससे कितनो का भला और कितनो का नुकसान होगा. हमें लगता है कि जीवन हमारा है नही हम सब जुड़े हैं एक ही ईश्वर से और तार से. जो भी करो उसमें खुशी मिले तो जरूर करो. पर किसी को दुख देकर नहीं. सहयोग करो, प्रेम करो, मिलजुल रहो. यही जीवन का मूल है. प्यार बांटते चलो. ज्ञान बांटते चलो. शुद्ध मन से दान दो. ध्यान करो. स्वयं से बात करो लोग पागल बोलेंगे बोलने दो. आत्मज्ञान कहीं बाहर नहीं हमारे भीतर है. बस मौन और ध्यान से इसे स्पर्श किया जा सकता है. खैर यह मेरे विचार है. जितने महापुरुष को पढा़ सबके ज्ञान का सार. आप भी सुनो और समझो. कौन हो आप. क्या हो आप. कहाँ हो, कब से हो, क्यो हो, इससे पहले कहाँ थे. यही मार्ग है आत्मज्ञान का. बहुत ज्ञान दे दिए. अब बस बाकी महादेव देंगे ज्ञान. हर हर महादेव.
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh