Dr. Shrikant Jain

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By Dr. Shrikant Jain

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आज दिनांक 18 दिसंबर 2020 दिन शुक्रवार को नेमावर तीर्थ क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी से विचार विमर्श करने का सौभाग्य मिला। सर्वप्रथम मैंने कहा गुरुदेव में शिक्षण कार्य से मुक्त हो चुका हूं अभी मन में इच्छा है की तकनीकी विषयों का हिंदी में अनुवाद करू और करने का प्रयास कर रहा हूं। आचार्य श्री ने कहा कि उनकी जब डॉक्टर कस्तूरीरंगन से चर्चा हुई थी तब उन्होंने भी इस बात को ध्यान में लाया था कि शिक्षा का माध्यम अपनी ही मातृभाषा हो। मैंने उनसे यह भी कहा कि दिनांक 16 दिसंबर 2020 को आप के प्रवचन में आपने इस बात को इंगित किया था कि हमारी शिक्षा व्यवहारिक नहीं है। शिक्षित व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत अपने ही पैतृक व्यवसाय से दूर हो जाता है और वह उस में रुचि नहीं रखता है यदि वह शिक्षित होकर अपने ही व्यवसाय में रुचि रखें तो वह अपनी शिक्षा का उपयोग कर नए-नए तरीके व्यवसाय करने के विकसित कर सकता है। आचार्य श्री ने कहा कि सारे तकनीकी ज्ञान का अनुवाद इजरायल ने अपनी हिब्रू भाषा में कराया और जिससे उसने अपनी उन्नति को नए आयाम दिए। उन्होंने मुझसे पूछा कि अंग्रेजी शिक्षा का भ्रम जाल पुस्तक क्या मैंने पढ़ी है, मैंने कहा हां उसको मैंने पढ़ा है और मैं यह महसूस करता हूं कि हम जब अंग्रेजी में शिक्षण लेते हैं तो कई ऐसे शब्द आते हैं जिनका हम चाहा हुआ सीधा अर्थ नहीं ले पाते हैं और कुछ का कुछ अनुमान लगाते हैं यह जब हम जैसे शिक्षित व्यक्तियों के साथ होता है तब निश्चित रूप से जो बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं उनके लिए तो सारी चीजें नयी है उन्हें उन शब्दों को समझने में और अधिक कठिनाई होती है और यदि यह सारी शिक्षा अपनी मातृभाषा में होता है तो वह आसानी से समझ में आता है। सरकार की नई शिक्षा नीति के तहत तकनीकी ज्ञान भी अब क्षेत्रीय भाषाओं में दिया जाने वाला है इसी बात को ध्यान रखकर ही मेरे मन में तकनीकी भाषा की पुस्तकों का हिंदी अनुवाद करने की इच्छा है और उन्होंने साधुवाद कहा और उन्होंने यह भी व्यक्त किया कि शिक्षा का जब तक व्यवहारिक उपयोग ना हो शिक्षा अर्थहीन है


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