नमस्ते, कैसे हो आप सभी। ईश्वर सबका कल्याण करे यही शुभ इच्छा है मेरी। चलिए आज की कहानी सुनिए। एक राजकुमार अपने भाई और पत्नी के साथ 14 साल के वनवास पर भेज दिया जाता है। स्वार्थ और अति मोह में एक माँ अपनी जनी सन्तान के सुख के लिए मुंह बोली सन्तान को वन भेज देती है। पिता के दिए वचन का मान रखने के लिए प्रजा प्रिय राज कुमार वन चले जाते है। नियति ने भावी राजा को जंगल में भेज दिया। वहां सबका भाला करते हुए 13 वर्ष बीत जाते है। अब घर वापसी में केवल 1 वर्ष शेष है। पर हाय रे विधि का विधान, बड़े राज कुमार की पत्नी कुटिया से गायब हो जाती हैं। खोजते खोज दोनों भाई बेहाल हो जाते हैं फिर एक घायल पक्षी से खबर पाते हैं, कि एक असुर हवाई मार्ग से एक स्त्री का हरण कर ले जा रहा था, वो स्त्री श्री राम रक्षा करिए, भैया लक्ष्मण रक्षा करिए की पुकार लगा रही थी। दक्षिण दिशा में ले गया वो असुर देवी को यह कह कर पक्षी के प्राण छूटे हैं। अब अयोध्या के राज कुमार राम और लक्ष्मण किसकिनकंधा राज्य में पहुचते हैं, वहां हनुमान जी से मिलते हैं। हनुमान सुग्रीव से राम जी को मिलते है। राम जी पत्नी विरह में हो कर भी सुग्रीव के कष्ट हारते है बाली को मार कर सुग्रीव को राजा बनाते हैं। सुग्रीव श्री राम के लिए सीता को खोजने की योजना बनाते हैं हनुमान लंका पहुच सीता माँ की खबर लाते हैं। लंका पति रावन के अहंकार रुपी सोने के महल में अपनी पूछ से आग लगा देते हैं। राम और रावन का युद्ध होता है। रामसेतु बनता है। राम सेना सहित लंका जाकर रावन का वध कर सीता को ससम्मान वापस पाते है। रावन पर श्री राम की विजय ही विजय दशमी और दशहरा के पर्व के रूप में माना जाता है। धर्म की विजय पताका श्री राम लंका में लहराते हैं। उसका विजय घोष भारत के हर कोने में आज भी गूँज रहा। श्री राम भी रावन से विजय से पूर्व आदि सकती जगदम्बा की पूजा करते हैं। आदि सकती के सहयोग और आशीर्वाद से ही सत्य की असत्य पर, धर्म का अधर्म पर, अच्छाई की बुराई पर विजय सम्भव होती है। देवी के नव रूपों से शक्ति पा कर ही मानव रुपी श्री राम (नारायण के अवतार ) सीता की रक्षा और धर्म की विजय पताका लहराते हैं। इसलिए दशहरा से पूर्व नव रात्री का पावन उत्सव मानते हैं। अपने अंदर के सभी दशानन अवगुणों को त्याग कर राम की मर्यादा अपना कर श्री राम बनते हैं। सीता स्वाभिमान हैं हमारा इसकी रक्षा के लिए नव दुर्ग से शक्ति पाकर हम सब श्री राम बन कर खुद में छुपे रावन को जलाते हैं। तबाही सही मायने में दशहरा मानते है। ये परंपरा हम यूं ही नहीं निभाते हैं। खुद में बसे रावन को जला कर ही बाहर के रावन पर विजय पाते हैं। यही सार है इस कहानी का, महत्व है इस पर्व को मनाने का। सुनते रहिए अपने दोस्त banarasi सिंह को। होंसला बढ़ ता है। कहानी पुरानी है पर सिख नयी और प्रासंगिक है। बस यही करना है। सीखते जाईए। हम भी सिख रहे। आप से। अपने विचार जरूर साझा करें।