दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 104. पातञ्जल योग, सूत्र 10. निद्राकी परिभाषा (भाग 2)


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अभावप्रत्ययालम्बनावृत्तिर्निद्रा। निद्रा से तात्पर्य प्रगाढ़ निद्रा अर्थात् सुषुप्ति से है। स्वप्न इसमें सम्मिलित नहीं है। स्वप्न विपर्यय अथवा विकल्प के अन्तर्गत सम्मिलित होता है। जिस निद्रा से जगने पर सात्विक भाव और स्फूर्तिका अनुभव हो वह अक्लिष्ट है । जिस निद्रा से जागने पर आलस्य का भाव उत्पन्न हो वह क्लिष्ट है। निद्रा वृत्तिमात्र का अभाव नहीं, अपितु चित्तकी एक वृत्ति है जो अन्य वृत्तियों का अभाव कर देती है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati