दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 122. योग-वेदान्त। जागनेका अर्थ है - अपनी विश्वरूपता को पहचानना। माण्डूक्य मंत्र 2


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*साधन चतुष्टय का ध्यान गुरुको भी रखना चाहिये।
*अपरिपक्व को वेदान्तज्ञान देना वैसे ही है जैसे बन्दरके हाथमें उस्तरा देना। .......
*एक ओर कहे कि "ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या" , दूसरी ओर कहते हैं "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" , "सर्व ँ ह्येतद्ब्रह्म" । इस विसंगतिका क्या समाधान है? वैराग्यका क्या अर्थ है? यह सारा जगत ब्रह्म ही है तो इसमेंसे छोडो़गे क्या? क्या संसारको छोड़ने का अर्थ ब्रह्मको छोड़ना नहीं हुआ?
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati