*संसारचक्रसे तब तक मुक्ति नहीं होगी जब तक संसारको अपनेसे भिन्न समझेंगे।
* योगशास्त्र में चित्तवृत्तिका निरोध और वेदान्तमें अविद्या का नाश एक ही बात है।
*जाग्रतमें जो देखे सुने होते हैं वही स्वप्नमें देखते हैं। स्वप्नमें जो अनदेखी अनसुनी चीजों को देखते हैं वहभी किसी न किसी पूर्वजन्ममें देखी सुनी होती है। प्रश्नोपनिषद में जो अदृष्ट और अश्रुत कहा वह इस जन्म के सम्बन्धमें कहा है।