दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 141. योग-वेदान्त - द्वैतका प्रमाण विक्षिप्त मन है और अद्वैतका प्रमाण समाहित मन है।


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*विक्षिप्तका अर्थ है अयुक्त, अर्थात् जो बिखराव देखता है। समाहित का अर्थहै युक्त अर्थात् योगयुक्त। *विक्षिप्त मन सम्पूर्ण इन्द्रियों में दौड़ता है और प्रतीत होता है कि इन्द्रियां दौड़ रही हैं - "नौकारूढ़ चलत जग देखा।" जैसे नावके चलने पर लगता है कि तट और बृक्ष इत्यादि चल रहे हैं।
*सुषुप्ति के अज्ञानका स्वरूप - सुषुप्ति में भी अद्वैत का अनुभव होता है, किन्तु वह अज्ञानरूप है। जैसे रात्रिके अन्धेरेमें वस्तुयें अलग अलग नहीं दिखतीं, अंधेरे से मिलकर मानो एक हो जाती हैं। *जाग्रतमें और स्वप्नमें मनकी थकान का स्वरूप तथा सुषुप्तिमें इसके विश्रामका स्वरूप।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati