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December 23, 2020E 143. योग-वेदान्त- सुषुप्तिमें आनन्दभुक् होने का अर्थ। जीवका आनन्द और ईश्वरका आनन्द।33 minutesPlay*जीवका आनन्द स्वयं भोगने का है और ईश्वरका आनन्द दूसरे को आनन्दित करनेमें है।जो लेकर प्रसन्न हो वह जीव, जो देकर प्रसन्न हो वह ईश्वर।जाग्रत में आनन्द के लिये प्रयास करना पड़ता है। सुषुप्ति का आनन्द अनायास होता है।...moreShareView all episodesBy Sadashiva Brahmendranand SaraswatiDecember 23, 2020E 143. योग-वेदान्त- सुषुप्तिमें आनन्दभुक् होने का अर्थ। जीवका आनन्द और ईश्वरका आनन्द।33 minutesPlay*जीवका आनन्द स्वयं भोगने का है और ईश्वरका आनन्द दूसरे को आनन्दित करनेमें है।जो लेकर प्रसन्न हो वह जीव, जो देकर प्रसन्न हो वह ईश्वर।जाग्रत में आनन्द के लिये प्रयास करना पड़ता है। सुषुप्ति का आनन्द अनायास होता है।...more
*जीवका आनन्द स्वयं भोगने का है और ईश्वरका आनन्द दूसरे को आनन्दित करनेमें है।जो लेकर प्रसन्न हो वह जीव, जो देकर प्रसन्न हो वह ईश्वर।जाग्रत में आनन्द के लिये प्रयास करना पड़ता है। सुषुप्ति का आनन्द अनायास होता है।
December 23, 2020E 143. योग-वेदान्त- सुषुप्तिमें आनन्दभुक् होने का अर्थ। जीवका आनन्द और ईश्वरका आनन्द।33 minutesPlay*जीवका आनन्द स्वयं भोगने का है और ईश्वरका आनन्द दूसरे को आनन्दित करनेमें है।जो लेकर प्रसन्न हो वह जीव, जो देकर प्रसन्न हो वह ईश्वर।जाग्रत में आनन्द के लिये प्रयास करना पड़ता है। सुषुप्ति का आनन्द अनायास होता है।...more
*जीवका आनन्द स्वयं भोगने का है और ईश्वरका आनन्द दूसरे को आनन्दित करनेमें है।जो लेकर प्रसन्न हो वह जीव, जो देकर प्रसन्न हो वह ईश्वर।जाग्रत में आनन्द के लिये प्रयास करना पड़ता है। सुषुप्ति का आनन्द अनायास होता है।