जीवको केवल सीमित ज्ञान हो सकता है, केवल सीमित वस्तुओं अथवा सीमित विषयोंका ज्ञान होता है।
वस्तुके ज्ञान का स्वरूप क्या है ? हमारा ज्ञान वस्तुके साथ एकाकार हो जाता है। भेद इन्द्रियों और विषयोंमें है, ज्ञानमें नहीं। यही सिद्धान्त शक्तिमें और ईश्वरमें लागू होता है। एक ही विद्युत बर्फ भी जमाती है, हीटर भी चलाती है, ट्रेनभी चलाती है। भेद उपयोग में हुआ, विद्युतमें नहीं।
इसी प्रकार जाग्रत स्वप्न और सुषुप्ति में विचरण करने वाला आत्मा अथवा ब्रह्म एक ही है।