दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 150. शिवपुराण अध्याय 2। स्वधर्म और परधर्म क्या है?


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*स्वधर्म का अर्थ है वर्णाश्रम धर्म। स्वधर्मके पालन से ही पारमार्थिक कल्याण होता है।
*शिवमहापुराण अद्वैत का प्रतिपादक और वेदान्तका सारसर्वस्व है।
*द्वैतके माध्यम से अद्वैत की ओर बढ़ना चाहिये।
*शिवपुराण को प्रणाम करने और पढ़नेका फल।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati