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December 26, 2020E 150. शिवपुराण अध्याय 2। स्वधर्म और परधर्म क्या है?15 minutesPlay*स्वधर्म का अर्थ है वर्णाश्रम धर्म। स्वधर्मके पालन से ही पारमार्थिक कल्याण होता है।*शिवमहापुराण अद्वैत का प्रतिपादक और वेदान्तका सारसर्वस्व है।*द्वैतके माध्यम से अद्वैत की ओर बढ़ना चाहिये।*शिवपुराण को प्रणाम करने और पढ़नेका फल।...moreShareView all episodesBy Sadashiva Brahmendranand SaraswatiDecember 26, 2020E 150. शिवपुराण अध्याय 2। स्वधर्म और परधर्म क्या है?15 minutesPlay*स्वधर्म का अर्थ है वर्णाश्रम धर्म। स्वधर्मके पालन से ही पारमार्थिक कल्याण होता है।*शिवमहापुराण अद्वैत का प्रतिपादक और वेदान्तका सारसर्वस्व है।*द्वैतके माध्यम से अद्वैत की ओर बढ़ना चाहिये।*शिवपुराण को प्रणाम करने और पढ़नेका फल।...more
*स्वधर्म का अर्थ है वर्णाश्रम धर्म। स्वधर्मके पालन से ही पारमार्थिक कल्याण होता है।*शिवमहापुराण अद्वैत का प्रतिपादक और वेदान्तका सारसर्वस्व है।*द्वैतके माध्यम से अद्वैत की ओर बढ़ना चाहिये।*शिवपुराण को प्रणाम करने और पढ़नेका फल।
December 26, 2020E 150. शिवपुराण अध्याय 2। स्वधर्म और परधर्म क्या है?15 minutesPlay*स्वधर्म का अर्थ है वर्णाश्रम धर्म। स्वधर्मके पालन से ही पारमार्थिक कल्याण होता है।*शिवमहापुराण अद्वैत का प्रतिपादक और वेदान्तका सारसर्वस्व है।*द्वैतके माध्यम से अद्वैत की ओर बढ़ना चाहिये।*शिवपुराण को प्रणाम करने और पढ़नेका फल।...more
*स्वधर्म का अर्थ है वर्णाश्रम धर्म। स्वधर्मके पालन से ही पारमार्थिक कल्याण होता है।*शिवमहापुराण अद्वैत का प्रतिपादक और वेदान्तका सारसर्वस्व है।*द्वैतके माध्यम से अद्वैत की ओर बढ़ना चाहिये।*शिवपुराण को प्रणाम करने और पढ़नेका फल।