*"अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः" -पतञ्जलि।
*"अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते" -गीता।
*अनात्मा से उपराम होना और आत्मासे प्रेम करना।
*भजन दृढ़ होने पर तत्वजिज्ञासा जागती है। तब स्वयं भगवान गुरुरूप में आकर उपदेश करते हैं।
*भक्ति और वैराग्य दोनों का अभ्यास आवश्यक है।
*असंयत चित्त वाले को योगकी प्राप्ति नहीं होती।
*इन्द्रियसंयम बाह्यसाधन है और अभ्यास-वैराग्य भीतरी साधन है। दोनों आवश्यक है।
*असंयमी को न तो ज्ञान प्राप्त होता है और न ही योग।