*आन्तरिक प्रवाह अभ्यास से दृढ़ होता है, बाह्य प्रवाह वैराग्यसे रुकता है।
*चित्त एक नदी है जिसकी दो धारायें हैं। एक संसार सागरकी ले जाती है दूसरी कल्याणसागर की ओर। इनमें से किस धारा में आपकी प्रवृत्ति है, इसमें पूर्वजन्मके संस्कारों की भूमिका होती है। वर्तमान जन्मके अभ्याससे एक धाराको रोककर दूसरीको प्रबल किया जाता है।
*अभ्यास और वैराग्य साधनारूपी पक्षीके दो पंख हैं। दोनों का होना आवश्यक है।