दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 156. पातञ्जल योग, सूत्र 14. तथा गीता 6.23-25- अभ्यास निरन्तर विना उकताये हुये और दीर्घकाल तक करें।


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इस एपिसोड में -
*अभ्यास निष्काम होने के लिये किया जाना चाहिये और निष्काम होकर किया जाना चाहिये।
*अभ्यास शनैः शनैः करना ठीक रहता है।
*अभ्यास निरन्तर विना उकताये हुये और दीर्घकाल तक करना होता है।
*योग और ज्ञानकी प्राप्ति केवल मनुष्य योनि में होती है।
* केवल मनुष्य योनि ऐसी है जिसमें भोग और योग दोनों का अवसर प्राप्त है। अन्य योनियां केवल प्रारब्ध भोगने के लिये मिलती हैं।
*अन्य योनियों में भोगे हुये भोगों के संस्कार मनुष्य योनि प्राप्त होने पर भी बने रहते हैं और तदनुसार मनुष्यकी प्रवृत्ति दिखलाई देती है।
* साधना और समाधिके चार व्यवधान (लय, विक्षेप, कषाय और रसास्वाद) और उनको दूर करने का उपाय।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati