दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 160. पातञ्जल योग, सूत्र 15- वैराग्यकी परिभाषा।


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दृष्टानुश्रविकविषयवितृष्णस्य वशीकारसंज्ञा वैराज्ञम्।
देखी हुयी और सुनी हुयी (स्वर्ग इत्यादि सहित) सब विषयों से वितृष्णा हो जाना वैराग्य है।
सिद्धियां पाने के लिये अथवा स्वर्गप्राप्ति के लिये साधना करने वाले को विरक्त नहीं कह सकते। राग द्वेष ईर्ष्या स्वर्ग में भी है।
वैराग्य भी राग-द्वेषपूर्वक नहीं होना चाहिये।
विरक्त साधक विचित्रता नहीं दिखाते ,चमत्कार नहीं दिखाते।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati