*मनुष्य शरीर , उसमें भी ब्राह्मण, पुनः श्रद्धायुक्त बुद्धि , पुनः सद्गुरु का मिलना - यह सब क्रमशः दुर्लभ हैं।
*उक्त विषय में उमा-महेश्वर संवाद -महाभारत अनु. 143.
*जो जिस वर्णका कर्म करता है, नर्क इत्यादि से लौटकर अगले जन्म में उसी वर्णके घर में जन्म पाता है।
*वर्णसंकरता एवं कर्मसंकरता।
*जो अपने धर्मका पालन करता है वही वास्तवमें धर्मका फल पाता है।
*जो जिस वर्ण का अन्न उदर में लेकर मरता है, वह अगले जन्म में उसी वर्ण में उत्पन्न होता है।
*कोई अब्राह्मण होते हुये यदि ब्राह्मण सदृश सदाचार का पालन करता है तो यह इस बातका संकेत है कि पिछले जन्ममें वह ब्राह्मण था और किसी त्रुटिवश नीचे के वर्णमें जन्म पाया।