*शूद्र का धर्म ही है सेवा। उसके लिये सर्वोत्तम सेवा संन्यासी की , तदुपरान्त ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यकी।
*संन्यासीकी सेवा सभी वर्णोंके लिये श्रेष्ठतम है।
*स्वधर्म का पालन करने वाला अर्थात् सेवाधर्मी शूद्र भी पूजनीय है। स्वधर्मरहित ब्राह्मण की अपेक्षा स्वधर्मका पालन करने वाला शूद्र आदरणीय है।