दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 196. म.अनु.१४३ - वैश्य क्षत्रिय का क्रमशः ब्राह्मणजन्म, शूद्रका ब्राह्मणत्व ब्राह्मण का शूद्रत्व।


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*शूद्र का धर्म ही है सेवा। उसके लिये सर्वोत्तम सेवा संन्यासी की , तदुपरान्त ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यकी।
*संन्यासीकी सेवा सभी वर्णोंके लिये श्रेष्ठतम है।
*स्वधर्म का पालन करने वाला अर्थात् सेवाधर्मी शूद्र भी पूजनीय है। स्वधर्मरहित ब्राह्मण की अपेक्षा स्वधर्मका पालन करने वाला शूद्र आदरणीय है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati