एपिसोड 712. श्रीभागवतसुधा 4
क्या नास्तिकों का भी उद्धार सम्भव है ?
1. नास्तिक किसे कहते हैं*?
"नास्तिको वेदनिन्दकः"।
"श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृति।"
ते सर्वार्थेष्वमीमास्ये ताभ्यां धर्मो हि निर्बभौ।।
योऽवमन्येत ते मूले हेतुशास्त्राश्रयाद्विजः।
स साधुभिर्बहिष्कार्यो नास्तिको वेदनिन्दकः।।
2. *नास्तिकता से समाजकी क्या हानि है *?
“प्रज्ञानाशात्मको मोहस्तथा धर्म्मार्थनाशकः ।
तस्मान्नास्तिकता चैव दुराचारश्च जायते ॥”
3. *ईश्वर को न मानना और वेदको न मानना* - यह दोनों भिन्न बातें हैं। ईश्वर को न मानने वाला भी आस्तिक हो सकता है, किन्तु वेद को न मानने वाला कदापि नहीं।
4. उदयनाचार्य द्वारा भगवान् जगन्नाथ को फटकार और नास्तिकों के उद्धार के लिये दोनों में वाद-विवाद।
5. भगवान् का स्मरण होना चाहिये , चाहे जिस भाव से हो। भक्ति से करो चाहे बैर बांधकर करो। चिन्तन होगा तो कल्याण होगा ही। प्रायः बैर में अधिक प्रगाढ़ चिन्तन होता है। तीसरी श्रणी नास्तिक की है। नास्तिक हो तो घोर नास्तिक ही बन जाओ। ईश्वर नहीं है, यही सिद्ध करने में सारी उर्जा लगा दो। किन्तु संशय में रहना ठीक नहीं। आर-पार की बात होनी चाहिये।