पुण्य और पाप का फल स्वप्नमें भी मिलता है।
स्वप्नकी रचना यह बुद्धि स्वयं करती है। स्वप्नका सृष्टिकर्ता स्वयं आपका सूक्ष्म शरीर है, वही बुद्धि की सहायतासे स्वप्नरचना करता है और वही अनुभव करता है। सूक्ष्मकी गति अबाध और अनन्त होती है। जाग्रत में हम स्थूल शरीर के अभिमानी हो जाते हैं और स्थूल व्यवहार करते हैं। स्थूल शरीर की सीमाओंमें बंधे होते हैं।
आप जिस वस्तुको और जिस व्यक्तिको अपना समझते हैं, क्या उसके साथ स्वप्न देखते हैं ? क्या आपके और उसके स्वप्न एक होते हैं? स्वप्न में तो सभी छूट जाते हैं। अर्थात् जिनमें आपकी ममत्व बुद्धि है उनमें तो २४ घंटे का भी नैरन्तर्य नहीं है।