दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E114.योग-वेदान्त। स्वप्न और जाग्रत की व्याख्या। अपनी विश्वरूपता को जानो। सत्यम् ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।


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वेदान्त द्रष्टा और दृश्यके भेदको मिटाता है। *अपने अन्तको परमात्मा भी नहीं जान सकता। *अपने आपको हम नहीं देख पाते अतः अन्य रूपमें देखते हैं।
*दान इत्यादिमें महत्व वस्तुके त्याग का नहीं है, उसमें ममत्व के त्याग का है। *किसीको भी दिया गया कष्ट आपके अपनी अनुभूति का भी विषय बनेगा क्योंकि जिसे आप अन्य समझ रहे हैं वह भी आप ही हैं। अन्तर केवल व्यष्टि और समष्टि के समयमान इत्यादि का है। वह अन्तर भी अज्ञान के कारण है। *सम्यक् ज्ञान हो जाने पर देश काल इत्यादि का भी अन्तर नहीं रह जायेगा।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati