दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E116योगवेदान्त- जाग्रत,स्वप्न,सुषुप्ति,तुरीय। अन्तःकरण चतुष्टयके सम्बन्धमें वेदान्त और योगकी दृष्टि


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योगसूत्र केवल निद्रा का स्पष्ट नामोल्लेख करता है जिसे परिभाषाके आधार पर वेदान्तके सुषुप्ति का पर्यायवाची कह सकते हैं। योगसूत्रमें जाग्रत और स्वप्न का नामतः उल्लेख नहीं है। अतः इन तीनोंका परीक्षण प्रमाण विकल्प विपर्यय और स्मृति की परिभाषामें करना होगा।
तुरीय आत्माकी अवस्था नहीं है , यह तो स्वयं आत्मा है द्रष्टा है। वेदान्त और योग दोनों का लक्ष्य तुरीय है। दोनोंके अनुसार जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति का बाध होने पर तुरीय स्वतःसिद्ध है। "तदा द्रष्टुः स्वरूपे अवस्थानम्"।
स्वप्न और जाग्रत क्या है ? विषयों का अन्यथा ग्रहण। और सुषुप्ति क्या है? विषयोंका अग्रहण ।
अन्तःकरण चतुष्टय - मन अहंकार चित्त और बुद्धि वस्तुतः मनकी चार वृत्तियों के चार नाम हैं । एक है संकल्पात्मक मन , दूसरा संचालक मन, तीसरा संस्कारात्मक मन और चौथा निर्णायक मन।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati