कल थी काशी, आज है बनारस

Ek काशी/ ek बनारस: नाम_रूप ka अन्तर- जो दिख रहा वो बनारस, जो महसूस हो वो काशी


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यह काशी और बनारस की यात्रा पर लिखा एक बनारसी द्वारा लिखा और बोला गया काव्य रस में डुबा पान है. जिसमें रस ही रह है. क्योंकि यह बनारस है. पढ़ के मेरी यह काशी की कहानी मन में जग जाये भ्रमण की प्यास तो बस चले जाना बैग लेकर झोला उठाकर काशी की यात्रा पर. काशी जंहा वेद, पुराण, स्मृति, सहिंता, साहित्य, श्रुतियों, मान्यताओं, परंपरा, कला, ज्ञान, की अति प्राचीन धरा है वही बनारस आधुनिकता, द्वन्द्व, विषमता, बदलाव, परिवर्तन, ठेठ, कहीं उजडा़ तो कहीं निखरता हुआ शहर है. एक शरीर है एक आत्मा है. शरीर जमाने के साथ चल रहा तो आत्मा चेतना के साथ विवेक के साथ. तभी तो यह जिंदा शहर बनारस है. काशी में आने के लिए आध्यात्मिक होना होगा. पर बनारस में आप कैसे भी आ जाआे बनारस आपको थोड़ा बनारसी तो बना ही देगा. नदी की दो धारा सी साथ चल रही यह काशी और बनारस. बनारस में काशी है या काशी में बनारस. यह ज्ञात करने के लिए ज्ञान, विज्ञान सब फेल है. क्योंकि यह नाम का ही खेल है. काशी की यात्रा ध्यान, त्याग, शांति, मौन, मोक्ष है तो बनारस की यात्रा मोह माया, भागमभाग, चील्लपों. बनारस जंहा जिंस, बड़ा गाड़ी, फोन, चश्मा, पिज़्ज़ा और बर्गर हव. उहाँ काशी विश्वनाथ गली के कचौरी चलेबी हव. बनारस जंहा मोमोज, सैंडविच बा, काशी ठंडयी, लस्सी, भांग, मीठका आम हव. अब क्या बोले जाइये एक चक्कर लगा आइये तब समझेंगे इ काशी काशी का ह. सुनते रहिये वाचक बनारसी सिंह को. मै लेकर आती रहूंगी ऐसे ही भयंकर काव्य रस से भरी काशी और बनारस से जुड़ी कहानी आपके लिए. नमस्कार महादेव मित्रों.
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh