इस वक़्त बारिश हो रही है, बादल कुलबुला रहे हैं, हवा में खुनकी उड़ रही है, मेरा गतिरोध जारी है। एकान्तवास में पड़ा 'तड़पता' रहता हूँ लेकिन बाहर जाने का मन नहीं होता। कहीं मैं कामू के उस किरदार की तरह तो नहीं हो गया जो एक वाक्य से आगे नहीं बढ़ पाता- 'प्लेग' में?
- बलदेव वैद डायरी