दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 115. योग-वेदान्त- दुःख हमारे मनकी बनाई हुई सृष्टिमें है, ईश्वरकी बनाई सृष्टिमें नहीं।


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अपनी विश्वरूपता को पहचान लेने के उपरान्त विश्वके सुख दुःख हमारे सुख दुःख हो जाते हैं।
*सुखका वास्तविक स्वरूप वह है जो अविनाशी हो। वह अतीन्द्रिय होता है , सर्वदा और सर्वत्र होता है।
*सामाजिक दृष्टिसे भी दुःखका मुख्य कारण है तुलना।
*आपकी अपने मनसे बनाई हुयी सृष्टि आपको दुःख देती है, ईश्वरकी सृष्टिमें दुःख नहीं है।
*मनका दुःख मिटानेके लिये मन से ही क्रिया करनी होगी, शरीरके प्रयास से मनका दुःख नहीं मिटेगा।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati