दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 138. योग-वेदान्त - अज्ञान जाग्रत स्वप्न और सुषुप्ति तीनोंमें है।


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वस्तु जैसी है उससे भिन्न रूपमें उसको देखना स्वप्न है। स्वप्नमें कोई वस्तु होती नहीं, अपने आपको ही भिन्न भिन्न रूपोंमें देखते हैं। वस्तुतः जाग्रतमें भी ऐसा ही है। सुषुप्ति/निद्रा में कुछ नहीं देखते कुछ नहीं जानते। इसी बात को समझ लेना ज्ञान है। जाग्रत और स्वप्नमें "अन्यथाग्रहण" है और निद्रामें "अग्रहण" है। बस इन्ही दो शब्दों में समूचा संसार है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati