*स्वामी अखण्डानन्दजी के अनुसार,
जाग्रत = शूद्र = ब्रह्मचारी,
स्वप्न= वैश्य = गृहस्थ,
सुषुप्ति = क्षत्रिय = वानप्रस्थ, और
तुरीय = ब्राह्मण = संन्यास।
*जाग्रत और स्वप्न मनका स्पंदन है। सभी नाम रूप मन के स्पन्दन हैं। *योगशास्त्र के अनुसार सारे द्वैत विक्षिप्त चित्त में प्रतीत होते हैं और वेदान्त का भी यही निष्कर्ष है। समाहितचित्त में द्वैत नहीं दिखता।
*अद्वैतमें प्रमाण नहीं हो सकता, क्योंकि प्रमाण केवल वहां होता है जहां दो या दो से अधिक हों।