वेदान्त। एपिसोड 541. मैं तीन अवस्था का साक्षी हूँ। तत्वबोधः 17. विचारचन्द्रोदय, प्रश्न 5/107-117 । *जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति - इन तीनों अवस्थाओं का मैं साक्षी हूँ। *जाग्रत की व्याख्या :- जिस अवस्थामें ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा विषयों को जाना जाता है और कर्मेन्द्रियों के द्वारा व्यवहार किया जाता है। उसे जाग्रत अवस्था कहते हैं। अध्यात्म (इन्द्रियां) अधिदैव (इन्द्रियों के देवता) और अधिभूत (इन्द्रियों के विषय) इन तीन के योग से व्यवहार होता है । (क) चौदह इन्द्रियां अर्थात् 5 ज्ञानेन्द्रिय, 5 कर्मेन्द्रिय, 4 अन्तःकरण अध्यात्म हैं, (ख) इन चौदहों के अलग अलग चौदह देवता अधिदैव हैं और (ग) इन चौदहों के अलग अलग चौदह विषय अधिभूत हैं। इन 42 तत्वों के मेल से जो व्यवहार होता है, उसे जाग्रत अवस्था कहते हैं। मैं अपने जागनेको भी जानता हूँ और न जागने (अर्थात् स्वप्न और सुषुप्ति) को भी जानता हूँ। इसलिये यह जाग्रत अवस्था मैं नहीं । और यह जाग्रत अवस्था मेरी नहीं। यह स्थूल देह की है। मैं इसको जानने वाला हूँ, मैं इसका केवल साक्षी हूँ।