एपिसोड 544. श्रीरामचरित मानस, बालकाण्ड, दो. 35-37 * मानस सरोवर का चित्रण। * राम (ब्रह्मकी) दो प्रकार की लीला -
सगुण लीला - अवतार के माध्यम से लौकिक चरित्र , जिसका इस ग्रन्थमें वर्णन किया जाना है।
निर्गुण लीला - माया के माध्यम से जगत् का सृष्टि पालन संहार - "लव निमेष महं भुवन निकाया। रचै जासु अनुसासन माया।"
* पुण्यकर्मों की वृद्धि रामकथा से ही होती है। यज्ञ तीर्थ दान इत्यादि पुण्य धान की फसल है तो रामकथा उसके लिये वर्षाजल।
"सो सब करम धरम जरि जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ।।"
* श्रीराम चरित मानस रूपी सरोवर के चार घाट -
१. पूर्व दिशाका घाट - स्वयं तुलसीदास जी का - बालकाण्ड आरम्भ से दोहा ४४ तक । इसके वक्ता श्रोता दोनों स्वयं तुलसी दास ही हैं। अथवा यह कहें कि वक्ता तुलसीदास जी हैं और श्रोता उनका मन तथा समस्त भक्त और जिज्ञासु।
२. दक्षिण घाट - दोहा ४५ से ११० तक। इसके वक्ता याज्ञवल्क्य ऋषि और श्रोता भारद्वाज ऋषि हैं। इसमें याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज के पात्रताकी परीक्षा लेते हैं। रामकथा सुनने की पात्रता क्या है? रामजी के अनन्य सखा/भक्त/स्वामी शंकर जी में प्रीति। शंकरजी की कथा में जिसकी रुचि नहीं , वह रामकथा सुनने का अधिकारी नहीं।
3. पश्चिम घाट - उमा-महेश्वर संवाद - कथा का मुख्य भाग। वक्ता शंकर जी, श्रोता भगवती उमा।
4. उत्तर घाट - वक्ता काकभुसुण्डि जी, श्रोता पक्षिराज गरुण ।
* "रघुपति महिमा अगुन अबाधा"।राम की वास्तविक महिमा निर्गुण और अवर्णनीय है। वहां तक तो मन की भी गति नहीं तो वाणी से कैसे कही जा सकती है। अतः सगुण महिमा का किंचित् वर्णन करने का प्रयास किया जा रहा है।
* इस ग्रन्थरूपी सरोवर के कुछ और विशिष्ट रूपक ।
* तद्गत , तल्लीन और तदाश्रय सम्बन्ध।
*आवत एहि सर अति कठिनाई। रामकृपा बिनु आइ न जाई।।