एपिसोड 554 मानस, बालकाण्ड, 47 एवं 104.
भरद्वाज मुनि ने पूंछा - राम कौन हैं? क्या दशरथनन्दन राम वही हैं जिनके नाम का शिवजी जप करते हैं और काशी में जिनके नाम का उपदेश करके जीव को मुक्ति प्रदान करते हैं अथवा कोई अन्य?
याज्ञवल्क्य जी ने कहा - आप श्रीराम के परमभक्त हैं, आपको रामकथा ज्ञात है। फिर भी यह आपकी उदारता और महानता है कि लोककल्याण के लिये मूढ़ की भांति पूंछ रहे हैं। इसी प्रकार का प्रश्न भगवती पार्वती ने शंकरजी से किया था। वही संवाद मैं आपको सुनाउंगा।
इसके उपरान्त याज्ञवल्कक्य जी शिव-पार्वती संवाद की भूमिका के बहाने भरद्वाज मुनिको शि़वचरित्र सुनाकर शिवभक्ति की परीक्षा लेते हैं। क्योंकि रामकथा सुनने के लिये केवल रामभक्त होना पर्याप्त नहीं, अपितु अनिवार्यतः शंकरजी में दृढ़ भक्ति होनी चाहिये।
"सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं।
रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं।।
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू।
रामभगत कर लच्छन एहू।।
इसलिये ,
प्रथमहि मैं कहि सिवचरित , बूझा मरमु तुम्हार।
सुचि सेवक तुम्ह राम के, रहित समस्त बिकार।।