एपिसोड 560. योगवासिष्ठ,नि.प्र., अ.13.योगमार्ग और ज्ञानमार्ग की तुलना।योग के ही दो विभाग हैं -प्राणनिरोध और ज्ञान।तथापि योग शब्द प्राणनिरोध के अर्थ में रूढ़ हो गया है। प्राणनिरोध में अनेक बाह्य साधनों की और शारीरिक दक्षताकी आवश्यकता होती है तथा यह अधिक कष्टसाध्य होता है। ज्ञानमार्ग में उतने साधनों की आवश्यकता नहीं होती और इसमें शारीरिक दक्षता की भी उतनी आवश्यकता नहीं किन्तु विचार क्षमता की अधिक आवश्यकता होती है। स्थूलरूप से यह भी कह सकते हैं कि जिनमें शारीरिक बल की प्रधानता है उनके लिये योगमार्ग और जिनमें बुद्धिबल की प्रधानता है उनके लिये ज्ञानमार्ग अधिक उपयुक्त है। किन्तु योगमार्ग तभी सफल है जब ज्ञान उसका लक्ष्य हो। अन्यथा योगमार्गी सिद्धियों के फेर में उलझकर रह जाते हैं।