दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 564. भगवद्गीता। प्रथम अध्यायके प्रथम श्लोक में प्रयुक्त "किं" शब्दका तात्पर्य


Listen Later

एपिसोड 564. भगवद्गीता। प्रथम अध्याय के प्रथम श्लोक में प्रयुक्त *किं* शब्द से तात्पर्य।
नारायण।
भगवद्गीताके प्रथम श्लोकका मूलपाठ इस प्रकार है- "धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।"
(हे सञ्जय! परमपुण्यदायक कुरुक्षेत्र में युद्धकी इच्छा से एकत्र हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?)।
*क्या किया*, इस प्रश्न का क्या औचित्य?
युद्धक्षेत्र में युद्ध करने गये हैं तो युद्ध ही करेंगे जो 10 दिन से चल ही रहा है। तब "क्या किया", यह पूंछने का कोई विशेष भाव है क्या? प्रश्न इतना सरल भी नहीं जैसा शब्द से प्रतीत होता है, क्योंकि संजय ने धृतराष्ट्र को सम्पूर्ण भगवद्गीता इसी *किम् अकुर्वत्* प्रश्न के उत्तर में सुनाया।
अनेक सुप्रसिद्ध विद्वानों यथा, प्रातःस्मरणीय शंकरानन्द सरस्वतीजी, प्रातःस्मरणीय मधुसूदन सरस्वती जी, प्रातःस्मरणीय उडि़या बाबा इत्यादि की व्याख्यानुसार किं शब्द विकल्पार्थक है। इन महानुभावों के अनुसार *किं* शब्द में धृतराष्ट्र के तीन वैकल्पिक भाव हैं - 1. धृतराष्ट्र के पूंछने का तात्पर्य है कि कुरुक्षेत्र *धर्मक्षेत्र* है और वहां *परमपुण्यशाली महापुरुष* भी थे, अतः हो सकता है कि वहां दुर्योधन की बुद्धि धार्मिक हो गयी हो और उसने पाण्डवों को आधा राज्य देना स्वीकार कर लिया हो और सन्धि हो गयी हो। 2. *युधिष्ठिर* पहले से ही निर्लोभी धर्मात्मा हैं अतः हो सकता है कि उस परमपुण्यशाली धर्मक्षेत्र में उनकी धर्मबुद्धि एवं वैराग्य और अधिक प्रदीप्त हो गया हो , इस कारण से अथवा स्वजनवध के पाप के भय से *धर्मपरायण पाण्डव सम्पूर्ण अधिकार का त्याग कर युद्ध से विरत हो गये हों*। 3. अथवा उक्त दोनों बातें नहीं घटित हो सकीं और युद्ध ही हुआ । इन तीनों में से कौन सी बात घटित हुयी ?
इसके उपरान्त संजय उत्तर देते हैं कि उक्त में से तीसरी बात ही हुयी अर्थात् युद्ध ही हुआ और विस्तार से बताते हैं कि युद्ध कैसे आरम्भ हुआ।
किन्तु हमारा विनम्र विचार है कि उक्त महाविद्वानों ने अनावश्यक रूप से बाल की खाल निकालने का प्रयास किया है। धृतराष्ट्र और सञ्जय के संवाद को भीष्मपर्वके आरम्भ से पढे़ं तो स्पष्ट हो जायेगा। *पितामह भीष्म ने आरम्भ के 10 दिन तक युद्ध किया और प्रतिदिन संजय युद्धक्षेत्र से लौटकर धृतराष्ट्र को पूरी आख्या देते थे और बताते थे कि किसने क्या किया, किस पक्ष का कौन योद्धा मारा गया । 10वें दिन सायंकाल लौटकर बताये कि पितामह भीष्म मारे गये*। तब धृतराष्ट्र हतप्रभ रह गये और उनसे आरम्भ से पूरी घटना पुनः विस्तार से बताने के लिये कहे। ऐसे में किम् कुर्वत का यह अर्थ निकालना कि युद्ध ही किया अथवा और कुछ , किसी दृष्टि से औचित्यपूर्ण नहीं लगता। आचार्य शङ्कर भगवत्पाद ने भी इस विन्दु पर कोई टिप्पणी नहीं किया है। यदि यहां किम् शब्द का विशेष अर्थ होता तो आचार्य शङ्कर भगवत्पाद अवश्य बताते।
अब थोडा़ तारतम्य पर ध्यान दें। *भीष्मपर्वके अध्याय 25से अध्याय 42 तक को भगवद्गीता कहा गया है*। इसमें अध्याय 25 (गीता का अध्याय 1) सम्पूर्ण और अध्याय 26 (गीता के अध्याय 2) के 10वें श्लोक तक भूमिका है। गीताका वास्तविक उपदेश अध्याय 26 (गीता के अध्याय 2) के 11वें श्लोक से आरम्भ होता है। वस्तुतः *भूमिका को स्पष्ट करने के लिये इसे बारह अध्याय पीछे से अर्थात् भीष्मपर्व के तेरहवें अध्याय से पढ़ना चाहिये। इस प्रकार भूमिकासहित भगवद्गीता का विस्तार 18 के स्थान पर 30 अध्यायों में हो जायेगा। मुख्य भगवद्गीता तो 17 अध्यायों की ही है*।
हां, *धृतराष्ट्र के पूँछने का भाव आश्चर्य के अर्थ में संगत लगता है। उनका तात्पर्य यह है कि पितामह भीष्म तो अपराजेय थे । उन्हे न्यायपूर्ण युद्ध में कोई पराजित नहीं कर सकता था। दूसरी ओर पाण्डव धर्मात्मा हैं, श्रीकृष्ण भी धर्मात्मा हैं। ऐसी स्थिति में पितामह का वध कैसे हो गया !!! अथवा पितामह दोनों पक्षों के परमपूज्य थे , दोनों पक्षों ने यह क्या कर डाला !!! अथवा धर्मात्मा पाण्डवों ने निश्चित ही अन्याययुक्त युद्ध किया तभी पितामह मारे गये, तो पाण्डवों ने यह क्या कर डाला* !!!!!
इसी "किम् अकुर्वत" प्रश्न का उत्तर ही भगवद्गीता है। भगद्गीता में धर्म-अधर्म , न्याय-अन्याय की ही व्याख्या है। संजय अर्जुन और भगवान् श्रीकृष्णके सम्पूर्ण संवाद को सुनाते हैं जिसमें प्रसंगानुसार पारमार्थिक विषयों का विस्तृत समावेश है।
और स्पष्ट विश्लेषण जानने के लिये तथा "किम्" शब्द की व्याख्या जानने के लिये पूरा आडियो सुनें और इसके पहले के भी पांच एपिसोड सुनें।
...more
View all episodesView all episodes
Download on the App Store

दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati