एपिसोड 565. भगवद्गीता, अध्याय 1, श्लोक 2-3. + महाभारत,आदिपर्व अध्याय 165-166। "दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्य9धनस्तदा। आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत।। पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्। व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।।" *संजय द्वारा दुर्योधन के लिये "राजा" शब्द प्रयोग करने का रहस्य । *दुर्योधन का शिष्टाचार- आचार्य द्रोण को अपने पास न बुलाकर स्वयं उनके पास गया। *दुर्योधन द्वारा पाण्डवों के सेनापति धृष्टद्युम्न के लिये "द्रुपदपुत्र" शब्द प्रयुक्त करने का रहस्य। *द्रुपद और आचार्य द्रोण की मित्रता और बैर का प्रकरण। *धृष्टद्युम्न की उत्पत्ति का रहस्य। * पाण्डवों द्वारा धृष्टद्युम्न को सेनापति बनाने का रहस्य।