एपिसोड 566,गीता मुक्तावली,अ.1 सामान्यतः तथा अ.2 श्लोक 1 से 7 तक।
* अर्जुन का विषाद ।
*अर्जुन को श्रीकृष्ण की फटकार।
*अर्जुन का शिष्यभाव में शरणागत होना। अब तक केवल सखा था अतः ब्रह्मविद्याके उपदेशका अधिकारी नहीं था। अब भक्तभाव में और शिष्यभाव में शरणागत हो गया तब ब्रह्मविद्या का अधिकारी समझकर भगवान् उसे गीता का उपदेश करेंगे। अर्जुन भगवान् के सखा के रूप में प्रसिद्ध ही था, यहां सातवें श्लोक में वह अपने को शिष्य घोषित करता है और आगे चौथे अध्याय में भगवान् ने उसे भक्त और सखा घोषित किया है।
*कृपण के दो अर्थ - 1. लौकिक धन के सम्बन्ध में जो सर्वविदित है, और 2. पारमार्थिक कृपणता - जो आत्मज्ञान प्राप्त किये विना इस लोक से चला जाय अर्थात् भगवद्भजन, सत्संग, ज्ञानप्राप्ति के लिये बुद्धि,समय और धन व्यय न करे, वह कृपण है। बृहदारण्यक में याज्ञवल्क्यजी कहते हैं - "यो वा एतदक्षरं गार्ग्यविदित्वाऽस्माल्लोकात्प्रैति स कृपणः"।