मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्ण सुखदुःखदाः। आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।। 2/14।। Highlights - 1. पूर्ववर्ती श्लोक 12 , 13 की सिद्धि कैसे होती है, सुखदुःख की निवृत्ति कैसे हो सकती है, इसका उपाय बता रहे हैं 14वें श्लोक में। 2. ज्ञानमार्ग का प्रथम चरण है तितिक्षा। 3. इस श्लोक में अर्जुन को "कौन्तेय" और "भारत" दो विशेषणों से सम्बोधित करने का तात्पर्य क्या है? 4. शब्द, रूप,रस, गंध,स्पर्श यह पांच विषय तथा सुख और दुःख - यह सातों अविद्या के कार्य हैं। 5. ज्ञान होने से किसी वस्तु और सुख-दुःख का नाश नहीं होता, अपितु उनके मिथ्यात़्व का बोध हो जाता है। 6. जब तक प्रारब्ध है, तब तक ज्ञानी का भी शरीर रहता है और प्रारब्धानुसार विषयों और सुखदुःख की प्रतीति भी होती है, किन्तु उनकी संवेदना अत्यल्प होती है। प्रतीति का नाश प्रारब्ध के नाश से ही संभव है - "प्रारब्धनाशात्प्रतिभासनाशः"। 7. ज्ञानी से भी कर्म होते हैं किन्तु वह उसमें कर्तृत्वभावना नहीं रखता अतः पाप-पुण्य से लिप्त नहीं होता। 8. ज्ञानसे केवल अज्ञान की निवृत्ति होती है, सुख-दुःख की नहीं। किन्तु ज्ञान से सुख-दुःख की क्षणभंगुरता और मिथ्यात्व का बोध हो जाता है अतः ज्ञानी शोक नहीं करता, समभाव में रहने लगता है। 9. ज्ञान होने का लक्षण क्या है ? वह शोक नहीं करता -स शोकात्तरति। 10. संसार से आसक्ति हटाने का उपाय क्या है ? आत्मा/परमात्मा/ईश्वर में आसक्ति कर लो। श्रेष्ठ वस्तु में आसक्ति होने पर छुद्र वस्तु से आसक्ति स्वतः छूट जाती है।