एपिसोड 575 गीतामुक्तावली, 2/19-21
श्लोक 19 और 20 कठोपनिषद के मन्त्रों के उद्धरण हैं -
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नाऽयं हन्ति न हन्यते।।
(गीता,2/19)
हन्ता चेन्मन्यते हन्तु़ँ़ हतश्चेन्मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायँ़ हन्ति न हन्यते।।
(कठ.1/2/19)
दोनों के भावार्थ - जो यह समझता है कि यह आत्मा किसीको मारता है और जो यह समझता है कि इस आत्मा किसी के द्वारा मारा जाता है, वे दोनों ही नहीं जानते ः, क्योंकि यह आत्मा न तो किसी को मारता है और न ही किसी के द्वारा मारा जाता है।
न जायते मृयते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।। (गीता,2/20)
न जायते मृयते वा विपश्चि-
न्नायं कुतश्चिन्न बभूव कश्चित्।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।(कठ. 1/2/18)
दोनों के भावार्थ - यह आत्मा न तो कभी जन्म लेता है और न ही कभी मरता है। यह ऐसा नहीं कि बार बार उत्पन्न हो। क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।
व्याख्या आडियो में सुनें।